पुरवा की डायरी

ये प्यार भी बड़ा अजीबोगरीब होता है।न जाने कब,कहां,किसको,किससे हो जाए,कुछ कहा नहीं जा सकता।कल तक मैं भी प्यार से अंजान था।कभी किसी लड़की को देखकर मेरा दिल धड़का ही नहीं।शादी के लिए कितनी ही लड़कियों को रिजेक्ट कर चुका हूं मैं।कोई पसंद आए तब तो।मां अक्सर खीजकर कहती है’विदित!लगता है ऊपर वाले ने तेरे लिए कोई लड़की बनाई ही नहीं।’अब मां की ऐसी बातें मेरे दिल में भी खलबली मचाने लगी थी।कहीं ऐसा न हो…पता नहीं क्या-क्या सोचने लगा था मैं भी।
पर पुरवा ने जब से मेरे ऑफिस में ज्वाइन किया है,न जाने क्यों मैं अपने आप में ही खुश-खुश सा रहने लगा हूं।वह अक्सर मेरे कैबिन में किसी न किसी काम से आती है।उसे देखकर न जाने क्यों मेरा दिल जोर-जोर से धड़कने लगता है।वैसे मैंने भी उसे कई बार देखा है नजरें चुराकर देखते हुए।दोनों के बीच बस काम की बातें ही होती हैं पर हमारे दिल एक-दूसरे से बिना कुछ कहे ही बहुत कुछ कह देते हैं।अब तो हर दिन मुझे उसका बेसब्री से इंतजार रहता है।दिल तो करता है उसे घंटों यूं ही निहारता रहूं।शायद वह भी मेरी एक झलक पाने के लिए बेताब रहती है।तभी तो हर दिन…काम तो बस एक बहाना होता है।न मैं कुछ कहता हूं न वह…बस दिन यूं ही बीतते जा रहे हैंआखिर यह चुप्पी कब तक …?कहीं इसी तरह न बीत जाए यह जिंदगी…बस यही खयाल रह-रहकर सता रहा है मुझे।
बीच मैं पापा की तबीयत अचानक खराब हो जाने के कारण मैं कुछ दिनों तक ऑफिस नहीं जा सका।जब ऑफिस पहुंचा तो पता चला कि पुरवा ने नौकरी से रिजाइन दे दिया है।
पुरवा के इस तरह बिना बताए चले जाने से मैं हतप्रभ था और परेशान भी।पुरवा एक ऐसी पहेली है जिसे मैं आज तक नहीं सुलझा पाया।एक दिन मैं अपनी कवर्ड से कुछ जरूरी फाइलें निकाल रहा था तभी एक डायरी मेरे हाथ लगी।उसपर लिखा था “पुरवा की डायरी” मैं खोलकर पढ़ने बैठ गया-
1जनवरी 2020
आज मेरा ऑफिस का पहला दिन था।न्यू ईयर पर नया माहौल,नए लोग कुछ अजीब सा महसूस कर रही हूं।आक्षा,युगी,असमी कोई भी तो नहीं है मेरे साथ जिनसे अपने मन की बातें कर सकूं। न्यू ईयर की खुशियां मना सकूं।आज का एक दिन एक सदी के बराबर लगा।पता नहीं कल कैसा होगा…? कैसे रह पाऊंगी मैं यहां…?
7 जनवरी 2020
बहुत अकेलापन महसूस कर रही हूं।ममा,पापा,अक्ष,मेरी फ्रेंड्स सब कितनी दूर हो गए हैं न मुझसे।मम्मी के हाथ का खाना खाए,पापा के साथ घूमने गए,अक्ष के साथ चेस खेले हुए न जाने कितने दिन हो गए हैं।अब तो बहुत मन करता है अक्ष के साथ झगड़ा करने का। कितना मजा आता था जब हम दोनों की लड़ाई होती थी और पापा हमेशा मेरा साइड लेते थे।मैं जिंदगी के इन हंसीन पलों को फिर से जीना चाहती हूं।सोच रही हूं नौकरी छोड़कर लखनऊ वापस चली जाऊं …।
15 जनवरी 2020
काफी ऊहापोह के बाद आज जब मैं बॉस विदित वैश्य के पास अपना रिजाइनिंग लैटर लेकर गई तो मेरी नौकरी छोड़ने की वजह जानकर बहुत हंसे वह।उन्होंने मुझे समझाया,’नई जगह,नए माहौल में एडजेस्ट होने में टाइम तो लगता है।आप दूसरों को समझेंगी,दूसरे आप को समझेंगे।कुछ वक्त तो लगेगा।आपके चारों तरफ खुशियां बिखरी पड़ी हैं बस जरूरत है उन्हें महसूस करने की।
विदित सर की बातों ने मुझे अपना फैसला बदलने पर मजबूर कर दिया।उनकी सोच,जिंदगी के प्रति उनका नजरिया आम इंसान से अलग ही है।वाकई!वह एक अच्छे इंसान हैं।पहली बार किसी इंसान से बातें करके मेरा मन इतना खुश हुआ।
25 जनवरी 2020
न जाने क्यों मुझे विदित सर से बातें करना अच्छा लगता है।शायद उन्हें भी…।बहुत अपनापन है उनकी बातों में।ऐसा लगता ही नहीं कि वह मेरे बॉस हैं।वैसे भी वह मेरे हमउम्र हैं पर जिंदगी की परख मेरे पापा की तरह है।मैं उनके साथ खुद को बहुत कम्फर्ट फील करती हूं। अपनी हर बात उनके साथ शेयर करती हूं।उनकी जिंदगी भी एक खुली किताब की तरह है।धीरे-धीरे हम एक दूसरे के काफी करीब आते जा रहे हैं।अब मुझे घर की कमी ज्यादा महसूस नहीं होती।बहुत अच्छे बीत रहें हैं जिंदगी के ये पल…।
2 फरवरी 2020
आज बहुत उदास है ये मन।विदित चार-पांच दिन की छुट्टी पर बाहर गए हैं।अब तो आदत सी हो गई है उन्हें देखकर अपने दिन की शुरुआत करने की।उन्हें देखे बगैर दिल को चैन नहीं मिलता।दिन पहाड़ सा लगता है।आँखों के सामने रह-रहकर उनका ही चेहरा नजर आता है।क्यों हो रहा है मेरे साथ ऐसा,समझ नहीं पा रही हूं…!क्या यह प्यार तो नहीं…नहीं!ऐसा कभी नहीं हो सकता।मुझे याद आ रही है वह शर्त जो कॉलेज के दिनों में मैंने अपनी फ्रेंड्स से लगाई थी कि प्यार होता नहीं किया जाता है और मैं कभी प्यार नहीं करूंगी।पर अब मेरा दिल मेरे बस में नहीं है…कैसे जीत पाऊंगी यह शर्त…!बड़ा मुश्किल लग रहा है।
10 फरवरी 2020
आज ममा-पापा की शादी की सालगिरह है।इसीलिए मैं पूना आई हूं।पार्टी में सब लोग चहक रहे हैं।पर मेरा चेहरा मुरझाया हुआ है।मुझे इस तरह देखकर ममा-पापा भी परेशान से लग रहे हैं ।मैं कैसे कहूं कि मैं…!कुछ अच्छा नहीं लग रहा।मैं चाहकर भी अपनी उदासी छुपा नहीं पा रही हूं…।
12 फरवरी 2020
छुट्टी न मिल पाने का बहाना बनाकर मैं पूना बापस आ गई हूं।ये कैसा आकर्षण है तुम्हारे व्यक्तितत्व में…!मैं बरबस ही तुम्हारी ओर खिंची चली जा रही हूं।मुझे लगता है,अगर हम ज्यादा दिन साथ रहे तो एक-दूसरे के इतने करीब आ जाएंगे कि दूर जाना मुश्किल हो जाएगा।विदित!मुझे डर लगता है प्यार से।मैं अपने-आपको प्यार से दूर रखना चाहती हूं अपनी शर्त जीतना चाहती हूं।इसलिए जॉब छोड़कर तुमसे दूर जा रही हूं।तुम्हारी जिंदगी फूलों की तरह महकती रहे बस यही दुआ है मेरी।
पत्र पढ़कर मेरे पैरों तले जमीन खिसक गई थी।उसके इस तरह अचानक चले जाने से मन बहुत उदास और दुखी हो गया था।बस यही सवाल किए जा रहा था मैं अपने आपसे अब उसके बिना कैसे रह पाऊंगा मैं…!?मैंने उसका नंबर डायल कर दिया ‘ पुरवा!यह कैसी शर्त जीतना चाहती हो तुम…?तुमसे दूर रहकर मैं बिन जल मछली की तरह तड़प रहा हूं और तुम्हे अपनी शर्त जीतने की पड़ी है।जरा!पूछो अपने दिल से…क्या तुम रह पाओगी मेरे बगैर…?नहीं न …! तो फिर जाकर कह दो अपने दोस्तों से कि “हां!मैं यह शर्त हार गई हूं!” वह खामोश थी,सिसक रही थी।उसकी आंखों से गिरे आंसूओं की बूंदें विरह की आग में जल रहे मेरे मन को ठंडक प्रदान कर रही थी।