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सामंजस्य

By Pramila Sharma
February 5, 2018
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साहिल सुबह उठकर न्यूजपेपर पढ़ने बैठ गए!अनामि चुपचाप उनके टेबिल पर चाय रखकर चली गई!
“सराहा,शीर्ष नाश्ता नहीं करना क्या?ये आजकल के बच्चे भी न,पूरे समय मोबाइल और लैपटॉप पर ले रहते हैं!खाने-पीने की तो कोई चिंता ही नहीं रहती!”साहिल के टेबिल पर नाश्ते की प्लेट रखते हुए अनामि बड़बड़ाई!
“अनामि!जल्दी से टिफिन तैयार कर दो!ऑफिस को देर हो रही है”जूते पहनते-पहनते साहिल बोले!
“जी,अभी लाई!”
“मम्मी अभी तक टिफिन तैयार नहीं हुआ!मुझे कॉलेज को देर हो रही है”सराहा गुस्से में बिना टिफिन लिए ही जाने लगी!
“दिन-रात मशीन की तरह चलती रहती हूं!किसी को मुझपर जरा सी भी दया नहीं आती!सब अपना सारा गुस्सा मुझपर उड़लते हैं!”अनामि अब आपे से बाहर हो गई थी!”सुबह से मोबाइल पर लगी पड़ी है इतना नहीं बनता कि किचिन में थोड़ा हाथ बटा ले!”
“पढ़ाई से फुरसत ही कहां मिलती है जो किचिन में कुछ कर सकूं!पढ़ते-पढ़ते ऊब सी जाती हूं!अब आप को तो किचिन से ही फुरसत नहीं है और पापा को ऑफिस से, जो हमें थोड़ा वक्त दे सकें!ऐेसे में मोबाइल का सहारा नहीं लूं तो क्या करूं!”सराहा ने अपनी सफाई पेश की।
“तुम्हें मोबाइल,लैपटॉप से फुरसत मिले तब तो कोई बात करूं न!एक बात को जब तक चार बार रिपीट न करूं,जबाब नहीं मिलता!”अनामि गुस्से से लाल-पीली होकर बोली।
“पापा से छुट्टियों में कहीं जाने की कहो तो कहते हैं ऑफिस में काम बहुत है,छुट्टी नहीं मिल सकती!और मम्मी के घर के काम तो कभी खत्म ही नहीं होते!” शीर्ष शिकायत भरे लहजे में बोला”अब ऐसे में हमें मनोरंजन के लिए कुछ तो चाहिए!सराहा क्या गलत कह रही है!”
“इन्हें तो फुर्सत ही नहीं है मुझसे बात करने की तो घुमाने क्या ले जाएंगे!जैसे मैं इनकी बीबी न होकर कोई नौकरानी होऊं!सुबह उठकर न्यूजपेपर पढ़ने बैठ जाते हैं फिर तैयार होकर ऑफिस!शाम को आकर टीवी देखने बैठ जाते है फिर खाना खाकर सो जाते हैं!मेरी तो जरूरत ही नहीं है इन्हें!”अनामि ने अपनी सारी भड़ास साहिल पर निकालकर रख दी!
“मुझसे बोल रही हो,जरा खुद को तो देखो!हमेशा उल्टी बात ही करती हो!सुबह चाय-नाश्ता टेबिल पर रखते हुए एक शब्द भी मुँह से नहीं निकलता जैसे मेेरे ऊपर कोई एहसान कर रही हो!तुमसे अच्छी तो नैना है चाय रखते हुए कम से कम यह तो कह देती है कि सर,चाय ले लीजिये!”
“ओह!तो मेरी तुलना अब घर की नौकरानी से करने लगे देख लिया कितनी औकात है मेरी इस घर में!तुम इज्जत करोगे तब तो बच्चे करेंगे!” अनामि ने पलटकर बार किया!
सराहा और शीर्ष ने बीच-बचाब करने की कोशिश की पर दोनों एक-दूसरे पर इल्जाम लगाए जा रहे थे कोई भी अपनी गलती स्वीकार करने को तैयार नहीं था।
अब दादी माँ मैदान में उतरी!सराहा और शीर्ष उनकी तरफ दौड़ पड़े”प्लीज दादी इन्हें समझाओ न!कैसे बच्चों की तरह झगड़ा कर रहे हैं!”
“ये घर नहीं मुसाफिरखाना है!किसी को किसी से कोई मतलब नहीं!सब अपने अपने काम से मतलब रखते हैं!इस घर में जो दूरियां बढ़ती जा रही हैं उसके लिए कोई एक नहीं,हर सदस्य जिम्मेदार है!तुम सबको अपने आपको बदलने की कोशिश करनी चाहिए!एक-दूसरे के लिए वक्त निकालना चाहिए और एक-दूसरे की भावनाओं की कद्र करना चाहिए!तभी यह घर,घर बन सकेगा!”दादी ने हिदायत दी!
“हां माँ!आप सच कह रही हैं इस घर में जो हो रहा है उसके लिए कहीं न कहीं हम सब जिम्मेदार हैं!बजाय एक-दूसरे को दोषी ठहराने के हमें अपनी गलतियों को सुधारने की कोशिश करनी चाहिए!”
“हाँ पापा!आप सच कह रहे हैं!मम्मी हम सबका कितना ध्यान रखती हैं!वह अपने लिए नहीं हम सबके लिए जीती हैं फिर भी घर में किसी को उनकी कोई परवाह नहीं है!हम सब अपना गुस्सा उनपर निकालते हैं!”सराहा भी अब घर में मम्मी के योगदान को महसूस कर रही थी! “हाँ,कल लंच में देर हो गई थी तो हमने बिना सोचे समझे मम्मी से कितना कुछ कह दिया था!इसके बजाय हम उनकी काम में थोड़ी सी हेल्प करते तो उनका भार भी हल्का हो जाता और उन्हें कितना अच्छा लगता।”शीर्ष ने बात को आगे बढ़ाते हुए कहा!जब तक मम्मा खुश एवं संतुष्ट नहीं रहेंगी तब तक यह घर खुशहाल नहीं बन सकता!
“तो हम सब मिलकर तुम्हारी मम्मी का खयाल रखेंगे!बोलो मंजूर है!”सराहा और शीर्ष की ओर देखते हुए साहिल बोले!
“जी पापा हमें मंजूर है!”दोनों ने एक साथ मिलकर तेज आवाज में कहा” और हम तीनो मिलकर आपका ध्यान रखेंगे!क्यों मम्मा आपको है न मंजूर!”सराहा और शीर्ष ने मम्मी के गले में हाथ डालते हुए कहा!
“हां-हां क्यों नहीं,तुम्हारे पापा इस घर को संवारने के लिए दिन-रात मेहनत करते हैं फिर भी हमें उनसे शिकायत रहती है कि वो हमें वक्त नहीं देते!आखिर उनकी भी तो मजबूरी है पर हम कभी समझने की कोशिश नहीं करते!”अब अनामि भी घर में साहिल के योगदान को महसूस कर रही थी!
“और हम दोनों आपके सपनों को संवारने के लिए दिन-रात मेहनत करते हैं कि जिंदगी में कुछ बन सकें पर आप दोनों को यही शिकायत रहती है कि हम अपने-आप में ही मस्त रहते हैं”शीर्ष और सराहा बोले!
तो चलो आज मिल-बैठकर तय कर लें कि किसकी क्या जिम्मेदारी है एक-दूसरे के प्रति और इस घर के प्रति!” साहिल बोले!
“अब हर संडे हम सब मिलकर घूमने जाएंगे एवं रात का खाना साथ मिलकर खाएंगे!”साहिल ने घोषणा की!
पापा की बात सुनकर सराहा और शीर्ष उछल पड़े!
“कल से मैं सुबह जल्दी उठकर पढ़ाई करूंगी और फिर मम्मी के साथ किचिन में हेल्प करूंगी ताकि मम्मी भी अपने शौक को पूरा करने के लिए कुछ समय निकाल सके!”सराहा ने ऐलान किया!
“सबके गंदे कपड़े लांड्री में भेजना और पापा के मोजे,टाई बेल्ट करीने से रखना मेरी जिम्मेदारी है!इन सबके लिए अब मम्मी को परेशान नहीं होना पड़ेगा!” शीर्ष बोला!
अब बारी अनामि की थी!”तुम सब मेरे काम के बोझ को इतना हल्का कर रहे हो तो रोज रात के खाने में एक अच्छी सी डिश तैयार करना मेरी जिम्मेदारी है!हरदम बुझी-बुझी सी रहने वाली अनामि के चेहरे पर अब मुस्कान बिखर गई थी!
अब सब कितने खुश नजर आ रहे थे!और दादी माँ!उनकी खुशी का तो जैसे कोई ठिकाना ही नहीं था!उनकी आदर्श परिवार की कल्पना साकार जो होने जा रही थी।
दोस्तों!जब एक महिला नौकरी करके पुरुष को फाइनेंसियल सपोर्ट प्रदान कर सकती है।घर के बाहर के कामों को बखूबी निपटा सकती है तो पुरुष की जिम्मेदारी बनती है कि वह घर के कामों में अपनी पत्नी की सहायता करे।घर के कामों में पत्नी का हाथ बटाने में शर्म कैसी…? ऐसा करके आप जोरू के गुलाम नहीं बल्कि एक आदर्श पुरुष कहलाएंगे। दोस्तों औरत परिवार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है उसे सम्मान दे।कदम कदम पर उसके सहयोगी बने उसकी भावनाओं की कद्र करें।
जब घर की महिला खुश एवं संतुष्ट रहेगी एवं घर के सभी सदस्य एक दूसरे को समझने की कोशिश करेंगे तभी घर रूपी यह गाड़ी सुचारू रूप से चल सकेगी।

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